Header Ads

PopAds.net - The Best Popunder Adnetwork

मराठा योद्धा तानाजी मालुसरे की कहानी

 वीर छत्रपति शिवाजी राजे  के बारे में तो आपने सुना ही होगा। उनके शासन काल में उन्होंने ढेरों लड़ाइयां लड़ी और उन्हें जीतकर कई किले एवं प्रदेश हिन्दवी स्वराज्य के नाम कर लिए। आज हम उनके ही सबसे अजीज दोस्त तानाजी मालुसरे की कहानी पढ़ रहे है। 

     मराठा इतिहास में  1670 ई. में सिंहगढ़ की लड़ाई प्रसिद्ध हैं , तो वह तानाजी की वजह से । तानाजी मालुसरे छत्रपति शिवाजी के सरदार। सेना नायक थे।  अपने बेटे के विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य को महत्व न देते हुए उन्होने शिवाजी महाराज की इच्छा का मान रखते हुए कोंढाणा किला जीतना ज़्यादा जरुरी समझा। इस लडाई में क़िला तो “स्वराज्य” में शामिल हो गया लेकिन तानाजी शहिद हूए थे। छत्रपति शिवाजी ने जब यह ख़बर सुनी तो वो बोल पड़े “गढ़ तो जीता, लेकिन “सिंह” नहीं रहा ।


       इतिहास पढने पर पता चलता है कि 1670 ई.पू. सिंहगढ़ की लड़ाई क्यों और कैसे हुई थी। सिंहगढ़ की लड़ाई का बिगुल बज गया था सभी मराठा योद्धा इस लड़ाई को जितने के लिए तैयार थे। लेकिन छत्रपति शिवाजी महराज के एक सेना नायक यानि तानाजी अपने पुत्र के विवाह में ब्यस्त थे उनको इस बात का पता नही था की युद्ध की घोषणा हो चुकी है।
शिवाजी ने तानाजी को खबर भेजवाया की युद्ध होने वाला है। युद्ध की खबर सुनते ही तानाजी ने अपने बेटे की शादी छोड़कर युद्ध के लिए निकल पड़े। शिवाजी महाराज का प्लान था की कोंडाणा को पुरे मराठा साम्राज्य में मिलाया जाये। अब क्या था तानाजी ने युद्ध की कमान अपने ऊपर लेकर 300 सैनिको के साथ कोंढाणा के लिए रवाना हो गये।


कोंडाणा का किला। जो की आज पुणे के पास स्थित है।  वह शिवाजी के लिए बहुत महत्वपूर्ण था।  इसलिए वो किसी भी हाल में इसे जितना चाहते थे। अपने 300 सैनिको के साथ तानाजी कोंडाणा पहुच गए। तानाजी और उनके 300 सैनिक रात में किले के पश्चिमी भाग से अंदर घुसने का प्रयास करने लगे लेकिन किले में घुस ने पा रहे था। तीन प्रयासों के बाद तानाजी और उनके 300 किले के अंदर घुसने में सफल हुए। एक स्त्री ने मदद किया था जिसका नाम घोपर्द था। कोंडाणा के किले में एक विशाल कल्याण दरवाजा था। दरवाजा खोलने के बाद तानाजी और सैनिको ने मुग़लों पर हमला किया और उसको अपने कब्जे में कर लिया। उस किले पर उदयभान का अधिकार था उसके सैनिक चारो तरफ से फैले हुए थे।शिवाजी ने तानाजी के साथ उदयभान के साथ जमकर युद्ध किया और ये लड़ाई बहुत दिन तक चली । इस युद्ध में तानाजी एक बहादुर योद्धा के तरह लड़ रहे थे और दुश्मनों को परास्त करते हुए आगे बढ़ रहे थे। अंत में तानाजी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये और ये लड़ाई शिवाजी ने जीत लिया था। इस युद्ध में तानाजी का एक महत्वपूर्ण योगदान था इसलिए शिवाजी ने कोंडाणा का नाम बदल कर सिंघगढ़ कर दिया।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ